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नीले नभ के शतदल पर
वह बैठी शारद-हासिनि,
मृदु -करतल पर शशि-मुख धर ,नीरव, अनिमिष एकाकिनि। , एकाकिनि! :वह स्वप्न-जड़ित नत-चितवन :छू लेती अग-जग का मन, :श्यामल, कोमल , चल -चितवन :जो लहराती जग-जीवन! वह फूली बेला की वन बन जिसमें न नाल, दल, कुड्मल , केवल विकास चिर -निर्मल जिसमें डूबे दस दश दिशि-दल! दल। :वह सोई सरित-पुलिन पर :साँसों में स्तब्ध समीरण, :केवल लघु-लघु लहरों में पर :मिलता मृदु-मृदु उर-स्पन्दन! स्पन्दन।
अपनी छाया में छिपकर
वह खड़ी शिखर पर सुन्दर,
है नाच रही रहीं शत-शत छवि सागर की लहर-लहर पर! पर। :दिन की आभा दुलहिन बन :आई निशि-निभूत निभृत शयन पर ,:वह छवि की छुई-मुईछुईमुई-सी :मृदु मधुर -लाज से मर-मर मर।
जग के अस्फुट स्वप्नों का
वह हार गूँथती प्रतिपल,
चिर सजल, -सजल , करुणा से उसके ओसों का अंचल! अंचल। :वह मृदु मुकुलों के मुख में :भरती मोती के चुम्बन, :लहरों के चल -करतल में :चाँदी के चंचल उडुगण! उडुगण।
वह लघु परिमल के घन-सी
जो लीन अनिल में अविकल,
सुख के उमड़े सागर-सी
जिसमें निमग्न उर-तट-स्थल! स्थल। :वह स्वप्निल शयन-मुकुल-सी है :हैं मुँदे दिवस के द्युति-दल, :उर में सोया जग का अलि ,:नीरव जीवन-गुँजन गुंजन कल!
वह नभ के स्नेह श्रवण में
दिशि का गोपन-सम्भाषण,
नयनों के मौन -मिलन में
प्राणों का मधुर समर्पण!
:वह एक बूँद संसृति की :नभ के विशाल करतल पर ,डूबे असीम सुषमा -सुखमा में सब ओर-छोर के अन्तर! अन्तर। :झंकार विश्व -जीवन की :हौले-हौले होती लय :वह शेष, भले ही अविदित, :वह शब्द-युक्त मुक्त शुचि आशय! -आशय।वह एक अनन्त -प्रतीक्षा नीरवस नीरव, अनिमेष विलोचन, अस्पृश्य, अदृश्य, विभा वह, जीवन की साश्रु-नयन क्षण! क्षण। :वह शशि-किरणों से उतरी :चुपके मेरे आँगन पर, :उर की आभा में कोईखोई, :अपनी ही छवि से सुन्दर! सुन्दर।
वह खड़ी दृगों के सम्मुख
सब रूप, रेख, रंग रँग ओझल अनुभूति -मात्र-सी उर में आभास-शान्त, शुचि , उज्जवल! :वह है, वह नहीं, अनिर्वच’, :जग उसमें, वह जग में लय, :साकार-चेतना सी वह, :जिसमें अचेत जीवाशय!
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