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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मुकेश मानस|संग्रह=पतंग और चरखड़ी / मुकेश मानस }} {{KKCatKavita}}
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भोले-भाले मासूम बच्चे
खेलते-खेलते गायब हो जाएंजाएँ
अल्ल-सुबह घूमने निकले बुजुर्ग
लौटकर घर न आएंआएँ
चहकती-महकती लड़कियांलड़कियाँख़ौफ़ज़दा पुतलियों में बदल जाएंजाएँ
देखते-देखते खुशबूदार ख़ुशबूदार फूलधारदार शूल बन जाएंजाएँ
हमने पहले तो नहीं देखा
भई वाह!
कैसा जबरदस्त जादू है
जो यह वक्त वक़्त हमें दिखा रहा है। '''रचनाकाल : जून 2000'''</poem>