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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
बीतती जब रात,
करवट पवन लेता
गगन की सब तारिकाएँ
मोड़ लेती बाग,
उदयोन्मुखी रवि की
बाल-किरणें दौड़
ज्योतिर्मान करतीं
क्षितिज पर पूरब दिशा का द्वार,
मुर्ग़ मुंडेर पर चढ़
तिमिर को ललकारता,
पर वह न मुड़कर
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|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
बीतती जब रात,
करवट पवन लेता
गगन की सब तारिकाएँ
मोड़ लेती बाग,
उदयोन्मुखी रवि की
बाल-किरणें दौड़
ज्योतिर्मान करतीं
क्षितिज पर पूरब दिशा का द्वार,
मुर्ग़ मुंडेर पर चढ़
तिमिर को ललकारता,
पर वह न मुड़कर