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आँखों के दिये बुझ जायेंगे
हाथों के कँवल कुम्हलायेंगे
 और बर्ग-ए-ज़बाँ से नतक़-वनुक्तो-सदा
की हर तितली उड़ जायेगी
इक काले समन्दर की तह् तह में
कलियों की तरह से खिलती हुई
फूलों की तरह से हँसती हुई
सारी शक्लें खो जायेंगी
 ख़ून खूँ की गर्दिश , दिल की धड़कन सब रंगीनियाँ रागनियाँ सो जायेंगी
और नीली फ़ज़ा की मख़मल पर
हँसती हुई हीरे की ये कनी
ये मेरी जन्नत मेरी ज़मीं
इस की सुबहें इस की शामें
बेजाने हुए बेसमझे हुए
इक मुश्त ग़ुबार-ए-इन्साँ पर
शबनम की तरह रो जायेंगी
हर चीज़ भुला दी जायेगी
और कोंपलें अपनी उँगली से
मिट्टी की तहों को छेड़ेंगी
मैं पत्ती -पत्ती कली -कली
अपनी आँखें फिर खोलूँगा
सर सब्ज़ सरसब्ज़ हथेली पर लेकर शबनम के क़तरे तुलूँगा तोलूँगा
मैं रंग-ए-हिना हिना, आहंग-ए-ग़ज़ल ,
अन्दाज़-ए-सुख़न बन जाऊँगा
रुख़सार-ए-उरूस-ए-नौ की तरह
और सारा ज़माना देखेगा
हर क़िस्सा मेरा अफ़साना अफ़साना है
हर आशिक़ है सरदार यहाँ
हर माशूक़ा सुल्ताना है
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