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Kavita Kosh से
|रचनाकार=शैलेन्द्र
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लीडर जी, परनाम तुम्हें हम मज़दूरों का,
हो न्यौता स्वीकार तुम्हें हम मज़दूरों का;
एक बार इन गन्दी गलियों में भी आओ,
घूमे दिल्ली-शिमला, घूम यहाँ भी जाओ!
जिस दिन आओ चिट्ठी भर लिख देना हमको
हम सब लेंगे घेर रेल के इस्टेशन को;
'इन्क़लाब' के नारों से, जय-जयकारों से--
ख़ूब करेंगे स्वागत फूलों से, हारों से !
दर्शन के हित होगी भीड़, न घबरा जाना,
अपने अनुगामी लोगों पर मत झुंझलाना;
हाँ, इस बार उतर गाड़ी से बैठ कार पर
चले न जाना छोड़ हमें बिरला जी के घर !
चलना साथ हमारे वरली की चालों में,
या धारवि के उन गंदे सड़ते नालों में--
जहाँ हमारी उन मज़दूरों की बस्ती है,
जिनके बल पर तुम नेता हो, यह हस्ती है !
हम तुमको ले साथ चलेंगे उस दुनिया में,
सुकुमारी बम्बई पली है जिस दुनिया में,
यह बम्बई, आज है जो जन-जन को प्यारी,
देसी - परदेसी के मन की राजदुलारी !
हम तुमको ले साथ चलेंगे उस दुनिया में,
नवयुवती बम्बई पली है जिस दुनिया में,
किन्तु, न इस दुनिया को तुम ससुराल समझना,
बन दामाद न अधिकारों के लिए उलझना ।
खद्दर धारी, आज़ादी पर मरने वालेगोरों की फ़ौज़ों से सदा न डरने वालेवे नेता जो सदा जेल में ही सड़ते थेलेकिन जुल्मों के ख़िलाफ़ फिर भी लड़ते थे । वे नेता, बस जिनके एक इशारे भर से--कट कर गिर सकते थे शीश अलग हो धड़ से,जिनकी एक पुकार ख़ून से रंगती धरती,लाशों-ही-लाशों से पट जाती यह बम्बईधरती । शासन की अब बागडोर जिनके हाथों में, आज है जो जनजनता का भाग्य आज जिनके हाथों में ।कानाफूसी फैल जाएगी नेता आए-जन को प्यारी-गांधी टोपी वाले शासक नेता आए । घिर आएगी तुम्हें देखने बस्ती सारी,बादल दल से उमड़ पड़ेंगे सब नर-नारी,पंजों पर हो खड़े, उठा बदन, उझक कर,लोग देखने आवेंगे धक्का-मुक्की कर । टुकुर-मुकुर ताकेंगे तुमको बच्चे सारे,शंकर, लीला, मधुकर, धोंडू, राम पगारे,जुम्मन का नाती करीम, नज्मा बुद्धन की,अस्सी बरसी गुस्सेवर बुढ़िया अच्छन की ।