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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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था उचित कि गाँधी जी की निर्मम हत्‍या पर

तारे छिप जाते, काला हो जाता अंबर,

:::केवल कलंक अवशिष्‍ट चंद्रमा रह जाता,

:::::कुछ और नज़ारा

::::::था जब ऊपर

:::::::गई नज़र।


अंबर में एक प्रतीक्षा को कौतूहल था,

तारों का आनन पहले से भी उज्‍ज्‍वल था,

:::वे पंथ किसी का जैसे ज्‍योतित करते हों,

:::::नभ वात किसी के

::::::स्‍वागत में

:::::::फिर चंचल था।


उस महाशोक में भी मन में अभिमान हुआ,

धरती के ऊपर कुछ ऐसा बलिदान हुआ,

:::प्रतिफलित हुआ धरणी के तप से कुछ ऐसा,

:::::जिसका अमरों

::::::के आँगन में

:::::::सम्‍मान हुआ।


अवनी गौरव से अंकित हों नभ के लिखे,

क्‍या लिए देवताओं ने ही यश के ठेके,

:::अवतार स्‍वर्ग का ही पृथ्‍वी ने जाना है,

:::::पृथ्‍वी का अभ्‍युत्‍थान

::::::स्‍वर्ग भी तो

:::::::देखे!
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