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मदिर नयन कीलाओ, फूल वदन कीप्रेमी को ही चिर पहचानहे लज्जास्मित प्रेयसि,मधुर गान मदिर लालिमा काघट सुंदर, सुरा पान कामौजी ही करता सम्मानमधुर प्रणय के मदिरालस मेंआज डुबाओ मेरा अंतर!:स्वर्गोत्सुक जोज्ञानी, सुरा विमुख रसिक, विमूढ़ों को जो:क्षमा करे, उनको भगवान,बंदी कर निज प्रीति पाश में:प्रेयसि का मुखविस्मृत कर देती क्षण भर को, मदिरा का सुख:प्रणयी के, मद्यप के प्राणलाओ वह मधु ज्वाल पात्र भर!
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