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भाव सत्य बोली मुख मटका
‘तुम - मैं की सीमा है बंधन,
मुझे सुहाता बाद्ल बादल सा नभ में
मिल जाना, खो अपनापन!
:ये पार्थिव संकीर्ण हृदय हैं,