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*[[मैं क्या उत्तर दूँ! जीवन में जिसने यह आग लगायी है (प्रथम सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल]]
*[[उर के आवेगों से विह्वल कच ने देखी वह छवि अजान (प्रथम सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल]]
*[[यह कैसा झूठा सत्य,  भीरु वीरत्व, सदय निर्दयता है! (द्वितीय सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल]]
*[[तुम खेल सरल मन के सुख से, अब छोड़ मुझे यों दीन-हीन (द्वितीय सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल]]
*[[मानस के मंदिर में जलती अब भी कैसी यह स्नेह-शिखा (द्वितीय सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल]]
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