भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatGeet}}
<poem>
मैं कहता कुछ रे बात और!
कोकिल की नव मंजरित कूक!
काले अंतर का जला प्रमप्रेम
लिखते कलियों में सटे भौंर!
मैं कहता कुछ, रे बात और!
</poem>