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हमारा समय / मुकेश मानस

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हमारा समय खिड़कियां खिड़कियाँ खटखटाई जा रही हैं
हम नहीं सुनते
दरवाजे दरवाज़े भड़भड़ाए जा रहे हैं
हम नहीं खुलते
हमारे समय का
सबसे क्रूरतम मुहावरा है
 रचनाकाल : 1994
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