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दूरी / विष्णु नागर

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<poem>
कोई आपसे इतनी दूर हो जितने चांद-सूरज हैं
तो प्रकाश, गर्मी और शीतलता देने की
जिम्‍मेदारी अपने-आप उसकी हो जाती है
फिर हमेशा आपके आगे-आगे उसे चलना है
और आपको अपनी नजर से ओझल नहीं होने देना है
फिर आपको यह चिंता नहीं करनी पड़ती
कि वह कब डूबेगा और कब उगेगा
फिर उससे आपको रोज सिर नहीं खपाना पड़ता
फिर उसके सामने बार-बार कपड़े नहहीं संभालने पड़ते
उसके सामने बेखटके प्‍यार किया जा सकता है
फिर उसे घर पर खाना खाने या चाय पिलाने बुलाना नहीं पड़ता
और डर नहीं रहता कि फलां बात से वह नाराज हो गया तो?

इसके अलावा एक अच्‍छी बात उसमें यह होती है
कि आप उसके बारे में चाहे जितना जानने की कोशिश करें
उसका भाव आपके बारे में हमेशा यही रहता है कि गुरू,
हम तुमको बहुत जानते हैं

इसलिए मैं सबसे कहता हूं कि या तो मुझसे दूर मत रहो
या इतने दूर रहो कि चांद-सूरज रहो.
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