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ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही
कोई हसीन नज़ाअरा नज़ारा तो है नज़र के लिए
वो मुतमुइन मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं क्बेक़रार बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिए
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