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{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश भट्ट 'कमल'
|संग्रह=हाइकू 2009 / गोपालदास "नीरज"
}}
<poem>
युग-युगों से
सोए पड़े पहाड़
जागेंगे कब ?
रात होते ही
गोलबन्द हो गये
चाँद-सितारे ।
घिर गया है विषैली लताओं से जीवन- वृक्ष । बुझते हुए पल भर को सही लड़ी थी लौ भी । मैं नहीं हूँ मैं, तुम भी कहाँ तुम सब मुखौटॆ है ।
</poem>