भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
::मानव-आत्मा का प्रकाश-कण
::जग सहसा, ज्योतित कर देता
::मानस के चिर गुह्य कुंज-बनवन!
'''रचनाकाल: मई’१९३५'''
</poem>