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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=इन्कार / परवीन शाकिर
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<poem>
तुम्हारी ज़िन्दगी में
मैं कहाँ पर हूँ ?
मैं कहां पर हूं ?
 
 
हवाए-सुबह में
हवा-ए-सुबह में
या शाम के पहले सितारे में
 झिझकती बूंदाबूँदा-बांदी बाँदी में 
कि बेहद तेज़ बारिश में
 रुपहली चांदनी चाँदनी में 
या कि फिर तपती दुपहरी में
 
बहुत गहरे ख़यालों में
 
कि बेहद सरसरी धुन में
 
तुम्हारी ज़िन्दगी में
 मैं कहां कहाँ पर हूं हूँ
हुजूमे-कार से घबरा के
 
साहिल के किनारे पर
 किसी वीक-येण्ड ऐण्ड का वक़्फ़ा 
कि सिगरेट के तसलसुल में
 तुम्हारी उंगलियों उँगलियों के बीच 
आने वाली कोई बेइरादा रेशमी फ़ुरसत
 
कि जामे-सुर्ख़ में
 
यकसर तही
 
और फिर से
 
भर जाने का ख़ुश-आदाब लम्हा
 
कि इक ख़्वाबे-मुहब्बत टूटने
 
और दूसरा आग़ाज़ होने के
 
कहीं माबैन इक बेनाम लम्हे की फ़रागत ?
 
तुम्हारी ज़िन्दगी में
 मैं कहां कहाँ पर हूं हूँ ?</poem>
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