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Kavita Kosh से
तरस गये
पहचान को खुद
सावन-भादौ भादौं ।
कहो तो सही
मन प्राणो प्राणों से तुम
वक्त सुनेगा ।
दुनिया में सुख की
एक ही रीत रीति ।
आप से मिले
तो लगा क्या मिलना
किसी और से ।!
खुद को दिन रात
रिश्तों से ज्यादा
तनाव बसते है
घरों में अब । !
युग-युगो युगों से
सोए पड़े पहाड़
जागेंगे कब?
भीड़ तो बढ़ी
विरल हो चले है हैं
रिश्ते परंतु ।