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है वो / विजय वाते

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<poem>
याद की सीढ़ी से साये की तरह उतरा है वो
इस तरह दुनिया में मेरी लौट कर आया है वो

इक खिलौना दो उसे पल भर में चुप हो जाएगा
इन दिनों एक छोटे बच्चे की तरह तनहा है वो

उसको बहलावे नहीं कुछ थपकियाँ दरकार है
हर किसी आहात पे पांखी सा डरा जाता है वो

बंद आखों में जगा करता है जो आठों पहर
आज आँखें खोल कर किस नींद में सोया है वो

घर की छत, नदियों, किनारों और खुद से ऊब कर
ठोस पत्थर की तरह आराम से लेटा है वो
</poem>