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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश कौशिक |संग्रह=चाहते तो... / रमेश कौशिक }} <poem> मे…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश कौशिक
|संग्रह=चाहते तो... / रमेश कौशिक
}}
<poem>
मेरे एक परिचित हैं
शिक्षा अधिकारी
सरकारी गोदामों के लिए
करते हैं
साहित्य की खरीदारी
मैनें उन्हें भेंट की पुस्तक
तो लगे पूछने - यह क्या है
मैंने कहा-कविता
सुनकर कुछ चौंके
फिर बोले
देखो बुरा मत मानना
इससे गोदाम में दीमक का डर है
आपकी पुस्तक में
कविताएँ भी नहीं पूरी
कोई पंक्ति बड़ी
कोई छोटी
यानी हर कविता अधूरी
उस पर भी
एक पृष्ट पर
कुल चार-पाँच पंक्तियॉँ
शेष पृष्ठ कोरा
आडिट को क्या उत्तर दूँगा
जब पूछेगा
पुस्तक के बदले
आधी लिखी कापी क्यों मंगाई
और छियानवे पृष्ठों का मूल्य
छ: रुपया कैसे दिया
इतने में
रामायण और महाभारत
दोनों को
क्यों नहीं खरीद लिया
</poem>
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|रचनाकार=रमेश कौशिक
|संग्रह=चाहते तो... / रमेश कौशिक
}}
<poem>
मेरे एक परिचित हैं
शिक्षा अधिकारी
सरकारी गोदामों के लिए
करते हैं
साहित्य की खरीदारी
मैनें उन्हें भेंट की पुस्तक
तो लगे पूछने - यह क्या है
मैंने कहा-कविता
सुनकर कुछ चौंके
फिर बोले
देखो बुरा मत मानना
इससे गोदाम में दीमक का डर है
आपकी पुस्तक में
कविताएँ भी नहीं पूरी
कोई पंक्ति बड़ी
कोई छोटी
यानी हर कविता अधूरी
उस पर भी
एक पृष्ट पर
कुल चार-पाँच पंक्तियॉँ
शेष पृष्ठ कोरा
आडिट को क्या उत्तर दूँगा
जब पूछेगा
पुस्तक के बदले
आधी लिखी कापी क्यों मंगाई
और छियानवे पृष्ठों का मूल्य
छ: रुपया कैसे दिया
इतने में
रामायण और महाभारत
दोनों को
क्यों नहीं खरीद लिया
</poem>