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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप जिलवाने |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> वह आता मेरे द…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रदीप जिलवाने
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वह आता मेरे दरवाजे तक
फिर फिर लौटकर
दस्तक देता/बजाता ‘कालबेल’
आती मैं जब तक हो जाता ओझल
ढूँढती बाहर सड़क पर
दूर तक फैली विरानी में
चटख रंगों की निरवता में
आकाश की फटी चादर के
ओर-छोर तक
पेड़ों की शाखों पर और
उस पर लटकती
उदास खामोशियों में भी
तलाशती उसे
यहाँ-वहाँ रहस्य की तरह
वह गुजर जाता
मेरे करीब से भी कईं बार
और मैं पहचान भी नहीं पाती
00
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|रचनाकार=प्रदीप जिलवाने
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वह आता मेरे दरवाजे तक
फिर फिर लौटकर
दस्तक देता/बजाता ‘कालबेल’
आती मैं जब तक हो जाता ओझल
ढूँढती बाहर सड़क पर
दूर तक फैली विरानी में
चटख रंगों की निरवता में
आकाश की फटी चादर के
ओर-छोर तक
पेड़ों की शाखों पर और
उस पर लटकती
उदास खामोशियों में भी
तलाशती उसे
यहाँ-वहाँ रहस्य की तरह
वह गुजर जाता
मेरे करीब से भी कईं बार
और मैं पहचान भी नहीं पाती
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