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द्रुज्बा / कर्णसिंह चौहान

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<poem>

हमारी तुम्हारी दोस्ती के नाम
द्रुज्बा के इस घर पर
मेज की दराज में
छोड़े जा रहा हूँ ये डायरी
इसमें दर्ज़ हैं
सोफिया के आखिरी साल।

यह शहर जब
बन गया हो पैरिस
और तुम्हें
सोफिया की याद सताए
तब तुम यहाँ आना
पन्नों की धूल छुड़ाना
इनमें मिलेगा
तुम्हारे घर का नक्शा
ऐशिया की लिपि में खिंचा हुआ।

द्रुज्बा : सोफिया की एक नई बस्ती

<poem>
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