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आज़ादी / कर्णसिंह चौहान

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<poem>

सब आजाद हैं अब
बदल गए हैं कानून
टूटीं सीमाएं
मनुष्य के आदिम राग में
सब अलमस्त हैं अब

नहीं निकलेंगे शांति के जुलूस
नहीं मनेंगी युद्धों की बर्सियां
उठाना नहीं होगा
मानवता का भार
भौतिक सौख साधन में
सब व्यस्त हैं अब

एक तुर्की से अंगिया लाएगा
दूसरा उसे पहन इतराएगा
तीसरा स्वर्ग के चक्कर लगाएगा
आएंगे नए गीत
नए नृत्य
जाएगी सहिता
समता, समानता, शांति, सुरक्षा
बिछड़ों का होगा मेल
पूँजी का चलेगा खेल
साधनों की रेलमपेल
मूल्य, आदर्श, मुहावरों से
सब त्रस्त हैं अब

<poem>
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