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{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>
उठा लंगर छोड़ बंदरगाह
अभी मिलना नहीं है विश्रांति का अवसर
कभी मिलना नहीं है
बस खोजनी है राह
गरजते हैं मेघ कड़-कड़-धमक-धम-धम
गरजता है जल
चपल विक्षुब्ध छल
बरसता है जल
फटे दिल से फेंकता बादल लुआठे आग के
मेघ लीला!
वायु की उद्वेग लीला
रात के स्याही पुते पट पर
अब उठा लंगर
बात कहने का मेरा अन्दाज तुझको
लगेगा काफी पुराना और बेढब
जानता हूं
किंतु प्यारे
द्वंद्व यह प्राचीन
और ये भी है
कि जिसको बांचना इतना सुगम हो
उसी को बूझना
बेहद जटिल
हम नए हैं
पुनर्नव संकल्प अपने
नया अपना तेज
उपकरण अपने नए
उत्कट ओर अपनी चाह
सो धड़ाधड़ कर चला इंजन
उठा लंगर
छोड़ बंदरगाह.
00
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>
उठा लंगर छोड़ बंदरगाह
अभी मिलना नहीं है विश्रांति का अवसर
कभी मिलना नहीं है
बस खोजनी है राह
गरजते हैं मेघ कड़-कड़-धमक-धम-धम
गरजता है जल
चपल विक्षुब्ध छल
बरसता है जल
फटे दिल से फेंकता बादल लुआठे आग के
मेघ लीला!
वायु की उद्वेग लीला
रात के स्याही पुते पट पर
अब उठा लंगर
बात कहने का मेरा अन्दाज तुझको
लगेगा काफी पुराना और बेढब
जानता हूं
किंतु प्यारे
द्वंद्व यह प्राचीन
और ये भी है
कि जिसको बांचना इतना सुगम हो
उसी को बूझना
बेहद जटिल
हम नए हैं
पुनर्नव संकल्प अपने
नया अपना तेज
उपकरण अपने नए
उत्कट ओर अपनी चाह
सो धड़ाधड़ कर चला इंजन
उठा लंगर
छोड़ बंदरगाह.
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