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Kavita Kosh से
तिकड़म की दुनिया मे रहकर
बहुत जी गए रामलखन
अपनी शर्तो पर जीने का हस्र
यही सब होना था
कविता छूटी दुनिया छूटी
सारे सपने छूट गए
सच्चाई का कच्चा साँचा
कल जिसको उँगली पकडाई पकड़ाई
वह मासूम हथेली थी
बस उस पर उँगली का छापा
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