भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: <poem>दिखती हो बेशक सीधी सीधी नहीं होती लेकिन सड़क कोई कदम-कदम पर होत…
<poem>दिखती हो बेशक सीधी
सीधी नहीं होती लेकिन सड़क कोई
कदम-कदम पर होते हैं
छोटे-छोटे ही सही
उतार-चढ़ाव
दृश्य-अदृश्य गड्ढ़े
हल्की-सी बांक कोई
रख दी जाती है
या रह भी जाए तो क्या
चलने वाला जानता है
सीधी हो नहीं सकती सड़क कोई
आदमी ने जो बनाया है इसे !
</poem>
सीधी नहीं होती लेकिन सड़क कोई
कदम-कदम पर होते हैं
छोटे-छोटे ही सही
उतार-चढ़ाव
दृश्य-अदृश्य गड्ढ़े
हल्की-सी बांक कोई
रख दी जाती है
या रह भी जाए तो क्या
चलने वाला जानता है
सीधी हो नहीं सकती सड़क कोई
आदमी ने जो बनाया है इसे !
</poem>