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सपने में / गोबिन्द प्रसाद

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<poem>

पढ़ते-पढ़ते
सो जाऊँगा कविता में
सोते-सोते देखूँगा फ़िल्म
सपने में भाषा से लड़ूँगा
बराबर वालों को जब तक होगा इल्म
बहस करूँगा सस्ती तुकों के तरफ़दारों से
बहस करूँगा कौम के सरदारों से
गाँधी नेहरू जिन्ना जैसे किरदारों से
कि भारतीय राजनीति और
हिन्दी ग़ज़ल का क़ाफ़िया इतना तंग क्यों है
रदीफ़ इस क़दर लम्बी हो गयी
कि राजनीति एक ही मिसरे में बुढ़िया हो गयी
<poem>
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