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|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
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<poem>

एक शून्‍य की परछाईं के भीतर
घूमता है एक और शून्‍य
पहिये की तरह
मगर कहीं न जाता हुआ

फिरकी के भीतर घूमती
एक और फिरकी
शैशव के किसी मेले की
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