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{{KKRachna
|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
|संग्रह=
}}
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<poem>
''' दिल्लगी है दोस्ती '''
दिल्लगी है दोस्ती
फासलों से चल
यह सड़क है हादसा
चौक पर ना मिल
फिंजा है वहशी बना
फूल बन मत खिल
रोशनी है फलसफा
आँख यूं ना मल
ख़बर जिससे गाल बजते
ताड़ है, ना तिल
हंसना-रोना बंद कर
यांत्रिक है दिल
मूर्तियां चुप रहेगी
आस्था! मत हिल
शहर जिसमें ऐंठते हो
सांप का है बिल
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|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
|संग्रह=
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''' दिल्लगी है दोस्ती '''
दिल्लगी है दोस्ती
फासलों से चल
यह सड़क है हादसा
चौक पर ना मिल
फिंजा है वहशी बना
फूल बन मत खिल
रोशनी है फलसफा
आँख यूं ना मल
ख़बर जिससे गाल बजते
ताड़ है, ना तिल
हंसना-रोना बंद कर
यांत्रिक है दिल
मूर्तियां चुप रहेगी
आस्था! मत हिल
शहर जिसमें ऐंठते हो
सांप का है बिल