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{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>
समय कठिन
प्राण सखा आंखें मत फेर
टोक-टोक जितना भी जी चाहे टोक पर आंखे मत फेर !
इन दुबले पांवों को
हाथों को
पकड़-जकड़
चढ़ी चली आती है अकड़ भरी
लालच की बेल
शुरू हुआ
इस नासपीटे वसन्ता का
सर्व अधिक कठिन खेल
आच्छादित हो जाएंगे खिड़की-दरवाजे
जहरीले नीले चित्ताकर्षक फूलों से
फूटेंगी दीवारें
सोच नहीं इससे क्या होना-जाना है
समय अभी
हेर-हेर-टेर
मुझे टेर
प्राण सखा !
00
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|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>
समय कठिन
प्राण सखा आंखें मत फेर
टोक-टोक जितना भी जी चाहे टोक पर आंखे मत फेर !
इन दुबले पांवों को
हाथों को
पकड़-जकड़
चढ़ी चली आती है अकड़ भरी
लालच की बेल
शुरू हुआ
इस नासपीटे वसन्ता का
सर्व अधिक कठिन खेल
आच्छादित हो जाएंगे खिड़की-दरवाजे
जहरीले नीले चित्ताकर्षक फूलों से
फूटेंगी दीवारें
सोच नहीं इससे क्या होना-जाना है
समय अभी
हेर-हेर-टेर
मुझे टेर
प्राण सखा !
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