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|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
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<poem>

चुमे फटे ओंठ सन गए रस से
चैन आन पड़ा
संग नशा भी आया
ऊपर से छटा अनुप्रास की !
वाह-वाह
बार-बार होवे
इस विरोधाभस की पुनरूक्ति
होती रहे
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