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{{KKRachna
|रचनाकार=संजय चतुर्वेदी
|संग्रह=प्रकाशवर्ष / संजय चतुर्वेदी
}}
<Poem>
चाकू की तरह काटती है रेलगाड़ी
सर्वोच्च न्यायालय
विश्व स्वास्थ्य संगठन का क्षेत्रीय दफ्तर
झोंपड़पट्टी
टाइम्स ऑफ इंडिया
प्रगति मैदान
अलीगढ़, भोपाल, बम्बई, कन्याकुमारी
वाराणसी, कलकत्ता
बीच में गरीबी, स्वतंत्रता और जनतंत्र के अनंत विस्तार
धान के खेत
गेहूं और ऊसर के खेत
ताल-तलैया, पोखर, कारखाने
सागर, पेड़, पहाड़, पुल, नदी, बिजली के तार
रिश्ते ही रिश्ते
अपने बक्से अपने पेटों में छुपाए
एक-दूसरे से डरे हुए लोग
बाहर मानवता के अनंत विस्तार
चाकू की तरह काटती है रेलगाड़ी
सोते हुए घरों की नींद को
पेड़ के नीचे बटवारा करते डकैतों को
धरती माता के धीरज को
अधजगे शहरों के सामूहिक स्वप्न को
पुल से गुजरती है ढम-ढम
जैसे गुजरती हो सृष्टि के डमरू से
पालम से राष्ट्रपति भवन तक
सब कुछ संवार दिया जाता है
बाइबिल पलट देती है रेलगाड़ी
अल्जीरिया से साइबेरिया
अलास्का रसे अर्हेंतीना
अक्षांशों, देशान्तरों, कालचक्र को काटती
कभी पनडुब्बी की तरह
कभी परिन्दों की तरह
गृह-नक्षत्रों की गतियों में गड़बड़ पैदा करती
शून्य में कालीमाई की सीटी
धड़धड़ाती हुई गुजर जाती है
बच्चों के सपनों में पाकीजा
और कटे हुए जानवरों पर रात-सी.
00
{{KKRachna
|रचनाकार=संजय चतुर्वेदी
|संग्रह=प्रकाशवर्ष / संजय चतुर्वेदी
}}
<Poem>
चाकू की तरह काटती है रेलगाड़ी
सर्वोच्च न्यायालय
विश्व स्वास्थ्य संगठन का क्षेत्रीय दफ्तर
झोंपड़पट्टी
टाइम्स ऑफ इंडिया
प्रगति मैदान
अलीगढ़, भोपाल, बम्बई, कन्याकुमारी
वाराणसी, कलकत्ता
बीच में गरीबी, स्वतंत्रता और जनतंत्र के अनंत विस्तार
धान के खेत
गेहूं और ऊसर के खेत
ताल-तलैया, पोखर, कारखाने
सागर, पेड़, पहाड़, पुल, नदी, बिजली के तार
रिश्ते ही रिश्ते
अपने बक्से अपने पेटों में छुपाए
एक-दूसरे से डरे हुए लोग
बाहर मानवता के अनंत विस्तार
चाकू की तरह काटती है रेलगाड़ी
सोते हुए घरों की नींद को
पेड़ के नीचे बटवारा करते डकैतों को
धरती माता के धीरज को
अधजगे शहरों के सामूहिक स्वप्न को
पुल से गुजरती है ढम-ढम
जैसे गुजरती हो सृष्टि के डमरू से
पालम से राष्ट्रपति भवन तक
सब कुछ संवार दिया जाता है
बाइबिल पलट देती है रेलगाड़ी
अल्जीरिया से साइबेरिया
अलास्का रसे अर्हेंतीना
अक्षांशों, देशान्तरों, कालचक्र को काटती
कभी पनडुब्बी की तरह
कभी परिन्दों की तरह
गृह-नक्षत्रों की गतियों में गड़बड़ पैदा करती
शून्य में कालीमाई की सीटी
धड़धड़ाती हुई गुजर जाती है
बच्चों के सपनों में पाकीजा
और कटे हुए जानवरों पर रात-सी.
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