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जिन्दगी/ ओम पुरोहित ‘कागद’

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<poem>जिंदगी ज़िन्दगी क्या है ?जब-जब भी सोचाहर बारमुंह लगता सा उतर पाया। मैंने पाया ;मां की गोद मेंरोते बच्चे केआगे पड़ीदूध कीखाली बोतल है -ज़िन्दगी।रोजगार की तालश मेंरेल के नीचेकटी पड़ायुवा लाश कीभूखी मां का प्रलाप है- ज़िन्दगी। भ्रष्टाचारमुनाफाखोरीबे-ईमानीनेता गिरी के लिए पुरस्कारऔर अधिकारों की मांग के लिएखांडे की धार है- ज़िन्दगी। सब कुछदेखतीसुनतीजमाने के दर्दअपने मेंसंजोतीसहतीलेकिन फिर भीभाव चेहरे पर रखतीआज काताज़ा अखबार है- ज़िन्दगी।</poem>
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