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अनुभव / लीलाधर मंडलोई

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<poem>

जानते हैं हम सिर्फ
वर्षा का अनुभव
जो आत्‍मा में उतर आती है चुपके

पत्तियों पर रोज सुबह
उतरती है दिव्‍य और गुपचुप
हमारे अनुभव में शामिल नहीं

हमारा भीगना एक आकस्मिक अनुभव है
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