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सूरज के आगे
पानी को लेकर
आंदोलन और प्रदर्शन कर रहे हैं।हैं
मानसून की दग़ाबाज़ी से
पानी के टैंकर आए-दिन
मोहल्लों में प्यास से मुक्ति की
गंगा बहा रहे हैं,
यह बात अलग है कि
चार्ल्स डार्विन सरेआम भौंक रहा है,
काहिल बिहारी मज़दूर
और भुक्खड़ उडि़या उड़िया किसान
ख़ुदकुशियों को आबाद रख
नाकाबिल, नामर्द और कमज़ोरों की
तादात घटाते जा रहे हैं
और यह कितनी अच्छी बुरी ख़बर है कि
शहर के नामचीन अस्पताल
स्वस्थ बाशिंदों के कारण
क्योंकि फुटपाथ के
कोकीनखोर रह चुके भिखारी
उन शाही होटलों की शान बढ़ा रहे हैं।हैं
हम समय से आगे चल रहे हैं
और अतरौली में
एक हयादार औरत के
भूखों मरने की ख़बर छाप रहा है।है
कितना ओछा आचरण है कि
जबकि आयकर विभाग
बाबूओं के घन-खाए बटुए से
आयकर चिचोर रहा है। है
क्या ज़रूरत है
अपनी लुगाई से धंधा करा रहा है
और ऐय्याश ज़िंदग़ी बसर कर रहा है?
 
(04-12-2007)
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