भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
''' षडयन्त्र-साधकों से '''
तुम भी साधक हो
हां, साधक हो
कहा ना!
साधक हो तुम!
श्रमशील साधक!
गुहा-कंदराओं में
दीन-दुनिया
और घर-द्वार से दूर
धूनी रमाए ध्यानरत हो तुम!
सृष्टि-विसर्जन के लिए
स्वयं को संसाधित करने में
तुमने भी पढ़े हैं
ज्ञान-विज्ञान
दर्शन-पुराण
कर्म और धर्म-शास्त्र
परम सत्य की खोज में.