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Kavita Kosh से
सुनता हूँ, मैंने भी देखा,
काले बादल में रहती चॉंदी चाँदी की रेखा! काले बादल जाति द्वेष के,काले बादल विश्व क्लेश के,काले बादल उठते पथ परनव स्वतंत्रता के प्रवेश के!
:काले बादल जाति द्वेष के,
:काले बादल विश्व क्लेश के,
:काले बादल उठते पथ पर
:नव स्वतंत्रता के प्रवेश के!
सुनता आया हूँ, है देखा,
काले बादल में हँसती चॉंदी चाँदी की रेखा! आज दिशा है घोर अँधेरीनभ में गरज रही रण भेरी,चमक रही चपला क्षण-क्षण परझनक रही झिल्ली झन-झन कर; नाच-नाच ऑंगन में गाते केकी-केकाकाले बादल में लहरी चॉंदी की रेखा।
:काले बादल, काले बादल,
:मन भय से हो उठता चंचल!
:कौन हृदय में कहता पलपल
:मृत्यु आ रही साजे दलबल!
आग लग रही, घात चल रहे, विधि का लेखा!
काले बादल में छिपती चॉंदी चाँदी की रेखा!
:मुझे मृत्यु की भीति नहीं है,:पर अनीति से प्रीति नहीं है,:यह मनुजोचित रीति नहीं है,:जन में प्रीति प्रतीति नहीं है!
:देश जातियों का कब होगा,:नव मानवता में रे एका,:काले बादल में कल की, ::सोने की रेखा!</poem>