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कनक सिंघासन सीय समेता। बैठहिं रामु होइ चित चेता।।<br>
सकल कहहिं कब होइहि काली।बिघन मनावहिं देव कुचाली।।३।।<br>
तिन्हहि सोहाइ न अवध बधावा।चोरहि चंदिनि राति न भावा।।<bbr>
सारद बोलि बिनय सुर करहीं।बारहिं बार पाय लै परहीं।।४।।<br>
दो0-बिपति हमारि बिलोकि बड़ि मातु करिअ सोइ आजु।<bbr>
रामु जाहिं बन राजु तजि होइ सकल सुरकाजु।।11।।<br><br>