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Kavita Kosh से
मैं जिस पथ पर भी चल निकला, तेरे ही दर पर जा बैठा।
मैं उर की पीड़ा सह न सकूँ,कुछ कहना चाहूँ, कह न सकूँ,ज्वाला बनकर भी रह न सकूँ,आँसू बनकर भी बह न सकूँ।तू चाहे तो रोगी कह ले,या मतवाला जोगी कह ले,मैं तुझे याद करते-करते अपना भी होश भुला बैठा।
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