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सीधी है भाषा बसन्त की


कभी आंख ने समझी

कभी कान ने पायी

कभी रोम-रोम से

प्राणों में भर आयी

और है कहानी दिगन्त की


नीले आकाश में

नयी ज्योति छा गयी

कब से प्रतीक्षा थी

वही बात आ गयी

एक लहर फैली अनन्त की ।


('ताप के ताये हुए दिन' नामक संग्रह से )
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