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नया पृष्ठ: बेगुनाहों के इस लहू में धर्म -ईमान सब खो गया, यहाँ न जाने कौन बहेलि…
बेगुनाहों के
इस लहू में
धर्म -ईमान सब
खो गया,
यहाँ न जाने
कौन बहेलिया
मौत का चारा
बो गया ।
चीख-कराहें
लथपथ धरती
उड़ती है
बारूदी गन्ध,
कायरता वाली
करतूतें
निश-दिन लिखती
आँसू-छन्द।
मासूमों का
नन्हा बचपन
छिपते सूरज-सा
हो गया ।
हथियारों के
सौदागर भी
अमन के नारे
लगा रहे ।
पहने मुखौटे
मानवता के
भस्मासुर को
जगा रहे।
बेबसी की इस
क़त्लग़ाह में
मानव ही कहीं
सो गया।
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