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सुबह / मुकेश मानस

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भूल जाओ बाहर का शोर
कहीं तुम्हारे मन के भीतर
देखो नाच रहा है मोर

महक रहे हैं सुंदर-सुंदर
रंग-बिरंगे फूल मनोहर
विस्तृत नभ के हर कोने से
उतर रही है सुबह की लाली
भर लो इसको आँचल में

स्वागत करो सुबह का
सुबह आई है द्वार तुम्हारे
2005
<poem>
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