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{{KKRachna
|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मानस
}}
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}}
<poem>
इस उलझन का नहीं किनारा
उलझ गया है जीवन सारा
प्यास तुम्हारी नहीं बुझेगी
है सागर का पानी खारा
जिस पत्थर को चाहे उठालो
हर पत्थर हालात का मारा
किसको ढूँढ रहे जंगल में
यहाँ नहीं कोई तुम्हारा
2005
<poem>
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इस उलझन का नहीं किनारा
उलझ गया है जीवन सारा
प्यास तुम्हारी नहीं बुझेगी
है सागर का पानी खारा
जिस पत्थर को चाहे उठालो
हर पत्थर हालात का मारा
किसको ढूँढ रहे जंगल में
यहाँ नहीं कोई तुम्हारा
2005
<poem>