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{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मानस
}}
{{KKCatKavita
}}
<poem>
एक
तुम हो कि सो रही हो
किसी बेख्याल में
और मैं जागा हुआ
तुम्हारे ख्याल में
दो
दिन भर ये सोचता हूँ
कि भूल जाऊं तुमको
मगर भूल जाता हूँ
तुम्हें भूलने की बात
तीन
तुम जाग रही हो
और जाग रहा हूँ मैं भी
मुझे नींद नहीं आती
उसे तुम ले गई हो
<poem>
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|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मानस
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एक
तुम हो कि सो रही हो
किसी बेख्याल में
और मैं जागा हुआ
तुम्हारे ख्याल में
दो
दिन भर ये सोचता हूँ
कि भूल जाऊं तुमको
मगर भूल जाता हूँ
तुम्हें भूलने की बात
तीन
तुम जाग रही हो
और जाग रहा हूँ मैं भी
मुझे नींद नहीं आती
उसे तुम ले गई हो
<poem>