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चुप्पी / गोबिन्द प्रसाद

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<poem>

तुम्हारे होठों पर
चुप्पियाँ
खिल आई हैं
जंगली फूलों की तरह
और मैं तुम्हारे होठों को नहीं
न जंगली फूलों को
देखना चाहता हूँ

मैं चाहता हूँ :
तुम्हारी चुप्पियों को देखना
उन से बातें करना
... चुप्प होकर
<poem>
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