भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह=क्या हो गया कबीरों को / शेरजंग गर्ग
}}
<poem>
खुश हुए मार कर ज़मीरों को।
रास्ते साफ़ हैं, बढ़ो बेख़ोफ़,
कैसे समझाए रहगीरो रहगीरों को!
दिल में नफरत की धूल गर्द जमी
हम सजाते रहे शरीरो शरीरों को।
कृश्न के देश में सुशासन जन,