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{{KKRachna
|रचनाकार=पूनम तुषामड़
|संग्रह=माँ मुझे मत दो / पूनम तुषामड़
}}
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<poem>
देखो हमारी
आंखों में आंखे डाल
और कहो-
कि... तुम्हारी सरकार
जनता के हितों के लिए
लड़ी है
ज़रा कहो तो
तुम्हारी कथित
जनता में मेरी ‘जात’
कहां खड़ी है।
</poem>
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|संग्रह=माँ मुझे मत दो / पूनम तुषामड़
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देखो हमारी
आंखों में आंखे डाल
और कहो-
कि... तुम्हारी सरकार
जनता के हितों के लिए
लड़ी है
ज़रा कहो तो
तुम्हारी कथित
जनता में मेरी ‘जात’
कहां खड़ी है।
</poem>