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फ़राज़ साहब की शायरी के प्रति दीवानगी का मैं कायल हो गया. लेकिन इस ग़ज़ल के भी दो तीन शेरों में ग़लतियाँ हैं.
जो तब तक सुधारी नहीं जा सकती जब तक वास्त्विक Text सामने न हो.