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11:15, 26 सितम्बर 2010
|संग्रह=
}}
<poem>आइनों पे आईनों पर आज जमी है काई,लिखझूठे सपनों की सारी सच्चाई , लिख
जलसे में तो सब खुश थे वैसेसारे लोग मगरफिर रोयी क्यों क्या जाने क्यूं रोती थी शहनाई,लिख
कभी रेत और कभी पानी पेसाहिल के रेतों पर या फिर लहरों पर इत-उत जो भी लिखे लिखती है पूरवाईपुरवाई,लिख
तेरी यादों में धुलीरात ने जाते-धुली-सीजाते क्या कह डाला थाअबके भिगी सुब्ह खड़ी है तन्हाईजाने क्यूं शरमाई,लिख
तारे शबनम के मोती फेंकेहुई चांद किसकी यादों की मुँहदिखाईबारिश में धुल-धुल कर भीगी-भीगी अब के है तन्हाई,लिख
क्या कहा रात ने जातेरूहों तक उतरे हौले-जातेसे बात कहेक्यों सुबह खड़ी है शरमाईकोई तो अब ऐसी एक रुबाई,लिख
कदम-कदम पे मुझको टोके हैकौन सांवली-सी परछाईछंद पुराने,गीत नया ही कोई रचबूढ़े बह्र पे ग़ज़लों में तरुणाई लिख
रुह में उतरे और बात करेअब ऐसी भी इक रुबाई लिख''(हंस, सितम्बर 2010)''
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