भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: वो अब तिजारती पहलू निकाल लेता है मैं कुछ कहूं तो तराजू निकाल लेता …
वो अब तिजारती पहलू निकाल लेता है
मैं कुछ कहूं तो तराजू निकाल लेता है
वो फूल तोड़े हमें कोई ऐतराज़ नहीं
मगर वो तोड़ के खुशबू निकाल लेता है,
अँधेरे चीर के जुगनू निकालने का हुनर
बहुत कठिन है मगर तू निकाल लेता है,
मैं इसलिए भी तेरे फेन की कद्र करता हूँ,
तू झूठ बोल के आंसू निकाल लेता है,
वो बेवफाई का इज़हार यूं भी करता है,
परिंदे मार के बाजू निकाल लेता है ....
मैं कुछ कहूं तो तराजू निकाल लेता है
वो फूल तोड़े हमें कोई ऐतराज़ नहीं
मगर वो तोड़ के खुशबू निकाल लेता है,
अँधेरे चीर के जुगनू निकालने का हुनर
बहुत कठिन है मगर तू निकाल लेता है,
मैं इसलिए भी तेरे फेन की कद्र करता हूँ,
तू झूठ बोल के आंसू निकाल लेता है,
वो बेवफाई का इज़हार यूं भी करता है,
परिंदे मार के बाजू निकाल लेता है ....