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सड़क-पांच / ओम पुरोहित ‘कागद’

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<Poem>
सड़क पर चलते
ट्रक पर लद कर
बूचड़खाने जाता
बूढ़ा बैल
ऊपर से शांत है
मगर
भीतर से
मौन नहीं है
वो
ताकत है सब को
मगर
पूछता है खुद से
क्या यही है वह सड़क
जिस के लिए
मैंने कंकर ढोए थे
और
क्या यही है वह ट्रक
जिसे गया है
मेरे ही पसीने से
और उम्र के बल?
यदि हां
तो बताओ आसमान
क्या यही है
श्रममेव जयते?
</poem>
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